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संधि विचार -राम किशोर पाठक

ram किशोर

दोहा छंद

आओ सीखें व्याकरण, सरल ढंग से आज।
दोहा की भाषा यहाँ, सहज करे हर काज।।०१।।

हिंदी भाषा में मिले, चिह्न तिरेपन वर्ण।
वर्णमाला विचार में, छियालीस का पर्ण।।०२।।

ग्यारह स्वर के रूप में, बाकी व्यंजन जान।
स्वर स्वतंत्र उच्चरित है, व्यंजन स्वर आधान।।०३।।

वर्णों के संयोग को, संधि बताते लोग।
नये रूप में शब्द का, करते सभी प्रयोग।।०४।।

मूल रूप से तीन हीं, संधि भेद है जान।
अंतर करना है सरल, सबकी कुछ पहचान।।०५।।

आपस में दो स्वर जुड़े, तभी स्वर-संधि नाम।
लघु पाकर गुण दीर्घ का, करता अद्भुत काम।।०६।।

व्यंजन आपस में जुड़े, या हो स्वर के साथ।
व्यंजन-संधि रूप वही, रखें हृदय धर हाथ।।०७।।

अयोगवाह विसर्ग है, इसका रखिए ध्यान।
वर्णमाला के कुल से, इसको बाहर मान।।०८।।

व्यंजन अथवा स्वर मिले, जब विसर्ग के संग।
संधि सभी विसर्ग कहें, सजे सदा नवरंग।।०९।।

खुद संग संधि सब करें, धरे विविध से रूप।
संधि सभी से जो करे, पाठक वही अनूप।।१०।।

रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश पालीगंज पटना।
संपर्क – 9835232978

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