होली दिन राधा रानी
भरने को गई पानी,
सहेली के संग ले के, सिर पे गगरिया।
मोहन हो मतवाला
अबीर गुलाल डाला,
अंग-रंग भींगी मेरी, चोली व चुनरिया।
धो के हार गई श्यामा
रंग नहीं छूटे रामा,
कैसा रंग डाला तूने, सांवला सांवरिया।
राधिका को देख दुखी,
ललिता ने बोली सखी,
अब नहीं जाना कभी, गोकुल नगरिया।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
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