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हिंदी -स्नेहलता द्विवेदी

हिंदी!
संस्कृत की जाई,
देवनागरी लिखाई,
स्वर व्यंजन वर्ण,
सब से बन है पाई।

हिंदी !
सुपाठ्य और सुलेख्य,
कुछ भी नहीं अतिरेक।
जैसी दिखती, वैसी होती,
बोलना लिखना सब एक।

हिंदी !
विविध बोली ,
भाषा को लेती समेट!
गतिमान, निर्मल नेक,
समृद्ध ब्यापक निर्मल भेंट।

हिंदी !
गौरवमयी गाथा,
भारतेंदु ,निराला,
जयशंकर , प्रेमचन्द, महादेबी
अनगिनत साधक ज्ञाता।

हिंदी!
नहीं अघाती,
फुले नहीं समाती,
गद्य पद्य कविता कहानी,
लेख नाट्य की सरिता बहाती।

हिंदी !
गीत संगीत में रमती रमाती।
भजन गजल सुनाती,
रूप बदलकर खिखिलाती।
रोम रोम को पुलकित कर,
गुदगुदाती पूर्णता प्रदान करती।

हिंदी !
हिन्द देश की प्यारी,
जन मन को भाती।
राष्ट्रभाषा कहलाती,
राष्ट्र धर्म निभाती।

स्नेहलता द्विवेदी”आर्या”

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