Site icon पद्यपंकज

मनहरण – एस.के.पूनम

S K punam

क्षितिज पार से आए,
क्षितिज पार को जाए,
मध्य काल तप्त कर,गोधूलि अस्त रहे।

प्रातःकाल मुसकाय,
दोपहर झुलसाय,
तप कर वसुंधरा,कुंदन बन सहे।

तरू डाल सूख कर,
पत्ते गिरे रूठ कर,
चुन-चुन तृण लाए,रहे तो नीड़ कहे।

नभ पर जलधर,
सींच रहे हलधर,
कंज पंक अंक भरे,सरोवर में गहे।

एस.के.पूनम(स.शि.)फुलवारी शरीफ

Spread the love
Exit mobile version