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अम्बे कण मन में बसती हो-स्नेहलता द्विवेदी आर्या

अम्बे कण मन में बसती हो

चमक असुर भयाक्रान्त हुआ,
सज्जन साधु मन शांत हुआ।
माँ साध्वी परम् तू तेजोमय,
चन्द्रघण्टा भगवती मान हुआ।

प्रेम स्नेह रसधार सहित,
अम्बे कण मन में बसती हो।

नमन कोटिशः नमन तुम्हें,
मम कष्ट भवानी हरती हो।
हे असुर विनाशक जगदम्बे,
धरती का तम तुम हरती हो।

प्रेम स्नेह रसधार सहित,
अम्बे कण मन में बसती हो।

है अद्भुत अमिट विधान तेरा,
माँ ज्ञान ज्योति विज्ञान तेरा।
तू परम् शक्ति हितकारी माँ,
है आत्म शक्ति निर्माण मेरा।

प्रेम स्नेह रसधार सहित,
अम्बे कण मन में बसती हो।

तू तो भय तृष्णा हरती हो,
जीवन को मधुमय करती हो।
मेरे भव ताप हरो अम्बे,
मन में कल्याणी रहती हो।

प्रेम स्नेह रसधार सहित,
अम्बे कण मन में बसती हो।

स्नेहलता द्विवेदी ‘आर्या’
मध्य विद्यालय शरीफगंज कटिहार

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