कितना भी तुम रट लो साथी भारत भाल की बिंदी है
पर गौरव और सम्मान के पथ पर खड़ी सिसक रही हिंदी है
स्वतंत्रता के चाह से निखरी ओजस्वी अभिव्यक्ति है ये
तुलसी प्रसाद पंत निराला की सिंधु सी सृजन शक्ति है ये
निज भाषा अभिमान के रथ पर बिलख रही हिंदी है
कितना भी तुम रट लो साथी भारत भाल की बिंदी है
वागीशा का संगीत है इसमें ,मिश्री से शब्द तान गीत है इसमें
राष्ट्र उन्नति का मूल है ये , शौर्य संस्कृति के अनुकूल है ये
दिक् दिगंत गुणगान शपथ पर भटक रही हिंदी है
कितना भी तुम रट लो साथी भारत भाल की बिंदी है
आओ सब प्रण कर लें साथी ,हिंदी को मस्तक मुकुट बनाएंगे
व्याकरण, भाव ,शब्द साधना से भारत का भाल सजाएंगे
विज्ञान और कला की देखो कैसी सुंदरतम सुर संधि है
ये भारत भाल की बिंदी है, यह हिंदी है
हां हिंदी है।
सुप्रिया रानी
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