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शून्य में भी शब्द तुम हो माँ-मनु कुमारी

शून्य में भी शब्द तुम हो माँ 

तुम सा कोई नहीं इस जहाँ में,
तुम हो ममता की मूरत।
मेरे हृदय में बसी है, माँ तुम्हारी प्यारी सूरत।
तुम हीं हो मेरी जन्मदात्री,
अपने रक्त के एक-एक बूंद से मुझे सींचने वाली,
मुझे लाड-प्यार से पालने वाली।
मेरे नखरे को सहने वाली,
सारी दुनियाँ की तमाम खुशियाँ मुझपे उडेलने वाली।
मुझमें सद्गुणों का संचार करने वाली ,
और कोई नहीं
बस एक तुम हीं हो मेरी माँ!
तुम हो तो ये दुनियाँ स्वर्ग से भी प्यारी है,
जिसके पास माँ नहीं, वह दौलतमंद भिखारी है।
इसलिए तेरे चरणों में हमने सारी दौलत वारी है।

तुम हो मेरे मुंह से निकली
पहली तोतली भाषा,
निराशा में भी तुम हो आशा।
पढ लेती मेरे मन की जिज्ञासा,
सादगी में तेरे खूबसूरती की खान है।
तेरी हीं परछाई मैं हूँ, यह कहता
सारा जहान है।
करूणा, दया, शीलवन्ती तुम हो
तुम सा नहीं कोई और है।
तुझको गर भूल जाए संतति,
कहीं नहीं ठिकाना ठौर है।
जब-जब मैं कमजोर पड़ती,
साहस, शौर्य, शक्ति तू मुझमें गढती।
हर विपत्ति का ढाल बनकर,
लड़ने को तू हीं सिखाती।
शून्य में भी शब्द तुम हो,
तू मेरा अस्तित्व हो माँ!
देखी नहीं मैं ईश्वर को लेकिन
तुम खुदा से कम नहीं माँ।

माँ का आंचल है हीं पावन,
नारायण भी थामे,
माँ का दामन।
स्वयं माँ है गंगा के समान,
जो संतति कष्ट दे तुझको,
उस जैसा नहीं पापी बड़ा।
कर देती हो क्षमा फिर भी,
तुम जैसी नहीं कोई और है।
जो तेरे ऋण को भुला दे,
नहीं उसका कहीं ठौर है।

स्वरचित:-
मनु कुमारी
प्रखण्ड शिक्षिका
पूर्णियाँ, बिहार 

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