बालहठ
माँ !
अब मैं छोटा बालक नहीं
मैं तो कुछ कर के दिखलाऊँगा ।
तुम मुझे धनुष बना कर दे दो
मैं सीमा पर लड़ने जाऊँगा ।
मैं भी प्रत्यंचा चढ़ाऊँगा
दुश्मन को मार गिराऊँगा ।
तरकश में बाण मेरे भर दो ।
मातृभूमि के लिए मरूँ
ऐसा वर दो ।
ना दुश्मन को आने दूँगा
ना स्वर्ग पाक को जाने दूँगा ।
अपना सीना तानकर
दुश्मन को ललकारूँगा ,
राष्ट्र की ओर जो कदम बढ़े
उस सर को काट गिराऊँगा ।
झेलम के मधुर लहरों को
अब ना गन्दा होने दूँगा ,
जो देश को आँख दिखाएगा
उसे नक्शे में ना रहने दूँगा ।
बार बार आकर के वो
सीमा को हाथ लगाता है,
न्योता देता महाकाल को
अपनी मौत बुलाता है ।
अब सहा नही जाता
मुझसे उसकी ये हठधर्मी,
पल आ गया दिखाने का
है रक्त में अब कितनी गर्मी ।
अब जिद ना कर तू माता
मुझे राष्ट्र कर्ज चुकाने दे,
भारत माता का बेटा हूँ
ये अब मुझे बताने दे ।
आंशू ना बहा चिन्ता मत कर
तेरा लाल वापस आएगा,
बस एक बार दुश्मन की छाती को
लाल कर दिखलाएगा ।
ये अंतिम युद्ध होगा
सब के सब मारे जाएँगे,
मेरे बाणों के तेज को
अब दुश्मन ना सह पाएँगे ।
माँ,
तुमने है मुझको जन्म दिया
बस बात मेरी एक समझो,
तुम मुझे धनुष बनाकर दे दो
फिर कभी ना कुछ मैं माँगूँगा।
मैं भी राष्ट्र भक्त कहलाऊँगा
मैं भी सीमा पर लड़ने जाऊँगा।
प्रभात रमण
मध्य विद्यालय किरकिचिया
प्रखण्ड – फारबिसगंज
जिला – अररिया