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दहेज-निधि चौधरी

दहेज

दहेज की अग्नि में जलते पिता की,
सुनाने हूँ आई कहानी सिसकती।

पिता
बिटिया की हो गई है पक्की सगाई,
कि लाखों में’ हमने खरीदी जमाई।

थी खेती पुरानी जिसे बेच आया,
बिटिया की खुशियँ झोली में लाया।

बेटी
कि रातों को सारी वो सोतें नहीं है,
वो पीड़ा भी अपनी तो कहते नहीं हैं।

खरीदी जमाई क्यो तुमने बाबा,
लगा दी सगाई क्यो तुमने बाबा।

सुनो मेरे बाबा मुझे ना ब्याहो,
न जीवन की सारी पूंजी लगाओ।

दहेजों के स्लोगन लिखने वाले,
कहाँ हैं व’ टीवी पे दिखने वाले।

कि पढ़ लिख के बाबा करूं नाम मैं भी,
कि भइया सी बाहर करूँ काम मैं भी।

भइया की राखी वो मिट्टी की गुड़िया,
बगीचे की’ अमिया वो चूरन की पुड़िया।

कि बाबा मैं’ तेरी ही लाठी बनूंगी,
कभी कोई तुम से ज़िद ना करूंगी।

पिता
ये नयनो में अश्को की बारात कैसी,
कि आई विदाई की ये रात कैसी।

विदा हो मेरी ज़िन्दगी जा रही है,
अंधेरे लुटा रौशनी जा रही है।

बेटी
ससुराल बाबा मैं कैसे जाऊँ,
ये बोझा मेरे दिल का कैसे दिखाऊँ।

मग़र सुन ले अब तो ये सारा ज़माना,।
मुझे बेटी बन कर जहां में न आना।

बिटिया बचाओ, बिटिया पढ़ाओ,
दहेजों के दानव को पहले जलाओ।

निधि चौधरी
प्रार्थमिक विद्यालय सुहागी
किशनगंज, बिहार

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