दोहावली
जीवों में तुम श्रेष्ठ हो, पाया तीक्ष्ण विवेक।
मानवता कहती बनो, उत्तरदायी नेक।।विपदा में जब हो घिरा, हारा मन इंसान।
संबल देता जो उसे, सच में वो भगवान।।सजग रहें धीरज धरें, यहीं साँस की डोर।
योगा आयुर्वेद से, थामे इसकी डोर।।जो सीमा पर हैं खड़े, करें बड़ा बलिदान।
जहाँ हमारे पथ मिलें, उनका हो सम्मान।।घृणा बढ़ाती दूरियाँ, और कराती क्लेश।
मन के इसी विकार को, रखो न मन में शेष।।रहे अडिग संकल्प जो, मनुज मनुज में व्याप्त।
तो क्यों राह अगम लगे, लक्ष्य सभी हो प्राप्त।।दवा एक आशा बड़ी और बड़ा है योग।
मिले कई दृष्टांत ये, मिटा जटिल भी रोग।।सच्चे रिश्ते में रहे, अपनेपन का भाव।
दूरी लौकिक हो मगर, मन का रहे जुड़ाव।।©विनय कुमार ‘ओज’✍️
आदर्श मध्य विद्यालय अईमा खिजरसराय (गया)
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