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दोहे-विनय कुमार ओज

दोहे

ऋण न किसी का भूलिए, मत भूलें उपकार।
ऋण जो आप उतार दें, मन से जाए भार।।

वाणी मरहम भी करे, अरु करती है घाव।
वाचा विष मत घोलिये, वन के हो मत दाव।।

यौवन धन अरु रूप पे, मत करना अभिमान।
रहें नही हैं ये सदा, इसे दौर तू जान।।

छल-प्रपंच जो भी करे, पाता है संताप।
क्षति अपनों की झेल के, मनुज चुकाये पाप।।

सूक्ष्म जगत का राज है, बड़ा विकट ये काल।
आत्म-मनन का दौर ये, देख जरा लो हाल।।

रुको जरा चिंतन करो, पाया क्या इस बार।
उन्नति पथ पर दीन की, हुई नहीं तो हार।।

वक़्त लगे बेकार जब, नया करो कुछ नित्य।
सुधी मनुज की चाह तो, पढ़ो ख़ूब साहित्य।।

“ओज” बताये आपको, इक उत्तम व्यायाम।
जब भी चित्त अधीर हो, चिंतन करे विराम।।

©विनय कुमार “ओज”✍️
आदर्श मध्य विद्यालय, अईमा
खिजरसराय ( गया )

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