हिंदी
मैं और मेरी हिंदी
दर्द को कहाँ बिन हिंदी कह सकूँगी !!
इसकी न हुई तो तूम्हारी क्या हो सकूँगी !
हिन्दी जैसे अधिकार है मेरा,
मेरे हृदय में बसा,परिवार है मेरा,
मैं मन की कैसे अभिव्यक्त करूँगी !
बिन हिंदी कैसे स्वयं को सशक्त करूँगी !
मां की भाषा और हिंदी की परिभाषा
कैसे शब्दों में कह दूं !!
भावनाएं जब हृदय में हो और मुख में हिंदी
शब्द शब्द कोमलता से कह दी,
मन का समर्पण, मां का सा प्रेम हिंदी से ही आएगा,
चाहे जितना गिटपिट कर लूं
आह और वाह बिन हिंदी मन को न भाएगा,
जब विद्यालय में स्वयं को प्रथम बार पाया था,
मित्रों ने हिंदी में ही बुलाया था,
शिक्षक ने प्रथम पाठ हिंदी का ही सिखाया था,
मैं हिंदी से हूं, हिंदी ही हूं
ये पहचान कोई छीन न पाएगा।
ज्योति कुमारी
मध्य विद्यालय भनरा, चांदन, बांका
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