प्रभाती पुष्प
प्रेम पुजारी
सभी भक्त प्रेमियों की-
करुण पुकार सुन,
दुख देख द्रवित हो, जाता है ये कन्हैया।
यमुना किनारे रोज-
कदम की डाल पर,
वसन चुराता कभी, बांसुरी बजईया।
प्रेम वश खींचे चले, जाते ग्वाल- बाल संग,
प्रतिदिन वृंदावन, चराने को गईया।
मानव यदि कृष्ण को-
सौंप दे जीवन डोर,
भवसागर पार लग जाये बिना नैय्या।
जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’
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