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दिवाली की रात -जैनेंद्र प्रसाद रवि

दिवाली की रात में
मनहरण घनाक्षरी छंद


रोशनी का ये त्यौहार,
खुशियांँ लाता अपार,
घरों को सजाते लोग, दिवाली की रात में।

लाते हैं वल्बों की लड़ी,
छोड़ते हैं फुलझड़ी,
खुशियांँ मनाते सभी, मिलकर साथ में।

पटाखे की होती शोर,
आनंद में सराबोर,
जैसे अगवानी होती, दूल्हे की बारात में।

अनाथ व बीमारों के,
अपाहिज लाचारों के,
घर ले के जाएंँ आज, मिठाई सौगात में।

जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना

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