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जीवन तो चलते जाना है-अर्चना गुप्ता

जीवन तो चलते जाना है 

माना संघर्षों से भरा जीवन है
पर चलना अनवरत हर क्षण है,
छिप जाए गर तम में दिनकर
देख न उसे अब घबराना है ,
चीर धुंध राहों से अब अपने
बन जुगनू चमकते जाना है 
जीवन तो चलते जाना है। 
आज स्वार्थलोलुप इंसान हुए हैं
स्वार्थवश कितने दर्द दिए हैं ,
कर्णभेदी शब्दों के बाणों से
घायल उर हर बार किए हैं ,
उम्मीदों के तरकश में अब तो
हौसलों के शर को उठाना है
जीवन तो चलते जाना है। 
रिश्तों में पड़ रही है सीलन
लब खामोश हैं बोलते नयन,
कर्तव्यों की कसौटी पर ढूंढते
सभी हिय से हिय का मिलन,
अपने मर्यादा की सीमा में रह
क्षितिज नाप अब आना है

जीवन तो चलते जाना है।
दिक्-दिगांतर होते तिरोहित
उत्पीड़न, संताप सम्मिलित ,
नैराश्य कूप में डूबते-उतराते
जीवन की हर आस अगणित,
आती जाती हर साँसों संग
दृढ़ता से कदम बढ़ाना है 
जीवन तो चलते जाना है।

अर्चना गुप्ता
म. वि. कुआड़ी
अररिया बिहार

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