कागज की नैया
इतनी प्यारी
सुंदर कितनी
ये मेरी
कागज की नैया
टिप टिप वर्षा रानी बरसे
खूब मटकती
मेरी नैया
भैया आये
दीदी आई
छुटकी सी राधू भी आई
सब बोले
है कितनी सुंदर
ये मेरी
कागज की नैया
भींग गई फिर भी
ये कैसे
कहाँ से आ गई
पुरवैया
डूब गई तो
खूब रोई मैं
और साथ में रोये भैया
छुटकी राधू
बीच में बोली
यह लो दीदी
मेरी नाव
तुम्हें देख ही
सीखी मैंने
इस पर चढ़ लो
रखो पाँव
हँसने लगे
सब उसकी बात पर
खूब खुश हुए भैया
चलने लगी
फिर मटक मटक कर
ये मेरी
कागज की नैया!
गिरिधर कुमार
संकुल समन्वयक, संकुल संसाधन केंद्र
म. वि. बैरिया, अमदाबाद, कटिहार
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