माँ
सीमाओं से परे
अभिव्यक्ति से ऊपर
एक शब्द नहीँ बल्कि सृजन की एक अनोखी गाथा।
स्वयं में समाहित ममता त्याग और संरक्षण का अभूतपूर्व विश्व,
सर्वोपरि शुभचिंतक तो हो बस तुम ही तुम।
संघर्षों की अनंत असीम यात्राओं का गतिशील सुंदर अभिव्यक्ति,
ममता से भरी एक अनोखी निर्झरनी,
संतान की सफलता ही है उसकी जीवनी।
माँ के जैसा नहीं होता है कोई।
हाथों में वात्सल्य की जादूगरी,
आँखो में करुणा की कावेरी,
माँ को आती है संतान की पीड़ा हरने की जादूगरी।
तेरा पथिक तेरी ही मंजिल,
तेरी ही दी काया और तेरी ही माया,
कहां हूं कौन हूं?
माँ मैं बस तुमसे हूं और तेरा ही हूं।
प्रियंका दुबे
मध्य विद्यालय फरदा, जमालपुर
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