मैं हूँ भारतवासी
मैं हूँ भारतवासी प्रतिदिन,
भारत का गुण गाऊँ।
मातृभूमि से नेह लगाकर,
इसका मान बढ़ाऊंँ।।
निर्मल पावन बहती नदियाँ,
मानव मन हर्षाती।
आसमान में उड़ी तितलियाँ,
सबका मन बहलाती।।
इस वसुधा पर सदा देवगण,
आने को ललचाते।
मातृभूमि की बात निराली,
ये सबको बतलाते।।
पर्वत झरने और समंदर,
लगते हैं अति न्यारे।
छाई है चहुँ दिशि हरियाली,
पादप लगते प्यारे।।
सदा शान में अडिग हिमालय,
होना निडर बताता।
मनभावन पावन जल गंगा,
जन का पाप मिटाता।।
संत जनों की वाणी मधुमय,
सबको नित सरसाते।
रंग बिरंगे बाग सुमन के,
नैनों को तरसाते।।
देव भूमि पर ऋषि मुनि योगी,
इसका गुण ही गाते।
तीर्थों से यह धरती शोभित,
जगमग जगमग भाते।।
हर बाला देवी की प्रतिमा,
बच्चे राम कहाते।
गाय यहाँ की प्यारी होती,
पंछी प्यार सिखाते।।
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई,
मिलजुल प्रेम बढ़ाते।
ऐसी पावन संस्कृति अपनी,
जग को हैं दिखलाते।।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
भागलपुर बिहार