मानव तन
मानव तन होता है नश्वर
जिसे बनाया सबके ईश्वर
काली मंदिर है दक्षिणेश्वर
सबसे ऊपर हैं परमेश्वर।
करें इसका सब सदुपयोग
न करना है दुरुपयोग
सदुपयोग से स्वास्थ्य मिलेगा
नहीं तो व्याधि के सह रोग।
हो इससे सदा सद्कर्म
भूल से भी न हो दु:कर्म
सत्कर्मों को कर करके हीं
सदा निभाएँ मानव धर्म।
छल प्रपंच न इसके मन में
गर्व घमंड न हो इस तन में
क्रोध लोभ हो गायब छण में
जैसे बारिश की बुंदे घन में।
तन से हो अच्छा व्यवहार
मन से बाहर हो सभी विकार
कदाचार से मुक्त इन्हें रख
हो इससे केवल सदाचार।
जैसा चाहो वैसा हीं
बन जाता है मानव शरीर
कोई दूजों को दुःख देता तो
कोई हरता है पर पीड़।
लेकिन बस यह याद रखें
फिर न यह तन मिलने वाला
सदाचार व परोपकार कर
कहलाओगे फिर मतवाला।
विजय सिंह नीलकण्ठ
सदस्य टीओबी टीम
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