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नारी-जैनेन्द्र प्रसाद रवि 

नारी

श्रद्धा से प्रेरणा पा मनु को आई जागृति। 
नारी समाज की दामन से, जुड़ी भारत की संस्कृति।।
नारी थी सीता, सावित्री, नारी अहिल्या, तारा है।
इसी की ओट पाकर, चलता समाज हमारा है।।
नारी को त्याग चले थे बुद्ध, पाने जीवन का तत्व ज्ञान।
लेकिन सुजाता की खीर ने, बनाया उनको बुद्ध महान।।
नारी माता, भगिनी है, सृष्टि आंचल में सोती है।
ममता के बदले दुनिया आज, उनके काज सराहनीय है।।
नर के विकास में नारी की, अहम भूमिका होती है।
नारी समाज की ज्योति है, हर पल बिखेरती मोती है।।
क्षीर पान कराती सबको, खुद भूखे भी रह लेती है।
तनय की पलकें चूम-चूम, उसकी पीड़ा को हरती है।।
कभी गमों के सागर से, निजात नहीं नर पाता है।
नारी की एक छोटी मुस्कान, आशा की ज्योति जगाता है।।
स्वयं जिसने विषपान किया, दूसरों को अमृत दान किया।
यह सबला जीवन दुनिया में, कब किसे नहीं कल्याण किया?
सीता के साथी राम हुए, राधा के घनश्याम हुए।
पहले आईं सीता-राधा, पीछे राम और श्याम हुए।।
नारी थी लक्ष्मीबाई, इंदिरा, मर्दों से बढ़कर काम किया।
एक सिंहासन ठुकराई, दूसरे ने जीवन दान दिया।।
रण हो या कि राजनीति, हर क्षेत्र में योगदान किया।
जब आई अखंडता की बारी, उसने अपना सीना तान दिया।।
नारी केवल अर्द्धांगिनी नहीं, नारी सर्वांगिनी होती है।
पुरुष इससे संबल पाता, नारी विरांगना होती है।।
जीवन रूपी गाड़ी में, नारी चक्के की धूरी है।
 पुरुष-नारी के बीच आज, बढ़ते न देखा दूरी है।। 

जैनेन्द्र प्रसाद रवि 
बाढ़ (पटना)

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