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नित दो पेड़ लगाएं-विजय कुमार पासवान

नित दो पेड़ लगाएं

जल बिना, जीवन धारा होगा, सोचा है?
पीने का पानी नहीं बचा है सोचा है?
सजीवों का जीवन नहीं बचेगा सोचा है।
जीव जंतु नर नारी बच्चे नहीं बचेंगे सोचा है।
जल बिना—–
हमने पेड़ को काट-काटकर जीवन रेखा काट दिया,
सिर्फ विकास के नाम पर यह कैसा विकास किया?
जल बिन कोहराम मचा है सोचा है।
कल क्या तुम पियोगे कभी सोचा है।
जल बिना——-
प्रकृति दोहन कर कहते हो तुम विकास,
सोने चांदी के पीछे तेरा भागम भाग।
डॉलर दिनार खाओगे क्या सोचा है?
सोने से प्यास बुझाओगे, क्या सोचा है?
जल बिन—-
नदियों की धारा सूख रही बरसात होती ही नहीं,
धरती का सीना सूख रहा, सांसे भी थोड़ी ही बची।
तुम भी तो जल जाओगे कभी सोचा है?
जल बिन—
मिसाइल परमाणु से दो दिन प्यास बुझेगा?
इसके पीछे दौड़ने वाले जल हल इससे निकलेगा?
आओ दुनिया वाले मिलकर कसमे अपनी खाएं,
धरती मां के आंचल में दो-दो पेड़ लगाएं।

विजय कुमार पासवान
मध्य विद्यालय मुरौल
सकरा मुजफ्फरपुर (बिहार)

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