नशा छोड़िए- गीतिका
२१२२-२१२२-२१२२-२१२
त्यागिए खुद ही नशा को गर्त में मत खोइए।
हो रहे बर्बाद क्यों आबाद भी तो होइए।
देखिए उनको जरा करते नहीं हैं जो नशा।
देखकर सुख को किसी की आप तो मत रोइए।।
आपके इस कृत्य से होती परेशानी सदा।
टूटता परिवार सारा नेह उनमें बोइए।।
मार्ग बदला आपने वह तो भरा है शूल है।
शूल चुनकर फूल बोए प्रेम से फिर सोइए।।
जन्म करना है सफल तो कर्म करना है सही।
भार कंधे पर लिए कुछ आप भी तो ढोइए।।
पद प्रतिष्ठा रूप यौवन धन अहम् को पालता।
है नशा यह भी समझकर आप खुद को टोइए।।
मान पाना है जगत में आप में वह अंश है।
जानिए निज कर्म को अब पाप अपना धोइए।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
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