पालनहारा
धरती मॉ का हरियाला आंचल है वृक्ष,
प्रकृति का श्रृंगार
प्राणी का पालनहारा है वृक्ष।
सांंसो के चक्र में,
निर्मल प्राणवायु का,
प्रदाता है वृक्ष।
सुंदर पुष्प प्रसून,
खिलती हुई कलियों से,
बगिया की शोभा,
बढ़ाता है वृक्ष।
सुसज्जित धरती पर हरे आवरण में,
वन-वन गुजरता
यायावर है वृक्ष।
बारिश की रिमझिम में,
बूंदो के नर्तन में,
पत्तियों से टपकती बूंदों संग,
लहराता है वृक्ष।
लदे हुए फलों से,
झुकी हुइ टहनियों संग,
बच्चों को लुभाता,
अन्नदाता है वृक्ष।
वानरों के करतब में,
पंछियों के कलरव में,
तिनके-तिनके बुनी,
घोसलों का सहारा है,
वन्यप्राणियों का,
शरणदाता है वृक्ष।
तो आओ सजाएं,
वृक्षों से धरती,
लगाएं नये वृक्ष,
न काटें हम वृक्ष।
स्वरचित:-
संगीता कुमारी सिंह
म. वि. गोलाहू
नाथनगर भागलपुर
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