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पानी की बर्बादी रोको-विजय सिंह नीलकण्ठ

पानी की बर्बादी रोको

पानी की बर्बादी रोको
बर्बाद करे जो उसको टोको
जल स्रोतों को ध्यान से देखो
कूड़े कचरे न इसमें फेंको।
जल से ही जीवन संभव है
तन संभव है मन संभव है
फिर क्यों है अनदेखी इसकी
बिन जिसके सब असंभव है।
सोते जगते इसपर निर्भर
न संरक्षण होता हर घर
पठारी क्षेत्र में जाकर देखो
पर्याप्त न मिल पाता है घर घर।
रेगिस्तानी क्षेत्र में इसके
कीमत पहचाने जाते हैं
बिन पानी के पशु मानव सब
दुःख में समय बिताते हैं।
लेकिन मैदानी भागों में
जहाँ मिले पानी भरपूर
यहाँ न इसका देखभाल हो
जबकि संरक्षण हो जरूर।
फिर भी ऐसा देखा जाता
टूटे नल से जल है बहता
नल ठीक करो न कोई कहता
केवल निज के स्वार्थ में रहता।
इसीलिए फिर से कहता हूँ
पानी की बर्बादी रोको
बर्बाद करे जो उसको टोको
जल स्रोतों को ध्यान से देखो
कूड़े कचरे न इसमें फेंको।

विजय सिंह नीलकण्ठ
सदस्य टीओबी टीम

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