प्रेम बनाये सभी काम
प्रेम प्यासी हर काया,
प्रेम ही सबको भाया,
प्रेम पास सब लाया,
प्रेम ही लुटाइये।
बिगड़े काम बने है,
फ़िर काहे को तने है
संकट जब घने है,
प्रेम से उबारिये।
अपने जब रूठें हो,
क्यों सोचें कोई झूठे हो
संदेह की लकीरें हो,
प्रेम से मिटाइये।
जग में फैला है द्वेष,
कोई न बचा है शेष
रख हम कवि भेष,
प्रेम ही सिखाइये।
✍️विनय कुमार वैश्कियार
आ. म. वि. अईमा, खिजरसराय ( गया )
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