Site icon पद्यपंकज

वंदनवार सजे शारदा – रामपाल प्रसाद सिंह

वंदनवार सजे शारदा

शोर हुआ अब कानन में।
मदिरा सवैया
भोर हुई उठ जा प्रिय जीवन,
बोल रही कोयल वन में।
स्वप्न निरंतर देख रही तुम,
शोर हुआ अब कानन में।

तारक चूर हुए नभ ऊपर
धीरज खोकर भाग रहे।
सूरज द्वार खड़ा अब हर्षित,
सोकर अंडज जाग रहे।।
संतन भाग रहे अब संगम,
हर्षित चित चेतन तन में।
स्वप्न निरंतर देख रही तुम,
शोर हुआ अब कानन में।

कर्षक जाग रहे घर भीतर
संत विचार लिए रहते।
पावन बादल नेह लुटाकर
ऑंगन अन्न सदा भरते।।
पाबस लौट गयी अपना घर,
छोड़ गयी चिंतन मन में।।
स्वप्न निरंतर देख रही तुम,
शोर हुआ अब कानन में।

पावन भाव लिए नदियाॅं नत,
बोल रही अब संयम से।
निर्मल है जल देख नहाकर,
लौट गई अब संगम से।।
आकर जल्द नहान करें सब
है डरना अब सावन में।
स्वप्न निरंतर देख रही तुम,
शोर हुआ अब कानन में।

रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’
प्रभारी प्रधानाध्यापक मध्य विद्यालय दरवेभदौर

0 Likes
Spread the love
Exit mobile version