साहस के दोहे
चोट खाकर ही पत्थर मूर्त्ति बन पूजा जाता है।
जो संकट से घबराता, वह कभी नहीं बढ़ पाता है।।
तपाया जाकर ही सोना सुंदर आभूषण बन पाता है।
बरतन बनाने से पहले मिट्टी को गूंथा जाता है।।
मौसम के थपेड़े को जो पौधा सह लेता है।
बहारों के आने पर वही फल-फूल देता है।।
पानी के उफानों को जो नौका टार जाता है।
लहरों से लड़कर नाविक पार उसी पर जाता है।।
सरहद पर लड़कर जो सैनिक सिर कटाता है।
शहीदों की श्रेणी में उसे ही गिना जाता है।।
पत्थर पर घिसकर ही मेंहदी लाली देती है।
धागों में गूंजने पर ही पुष्प माला बन पाता है।।
ईंटों से ईंटें जोड़ कारीगर महल बनाता है।
वह सफल नहीं होता जो केवल स्वप्न सजाता है।।
फूलों से रस चूस मधुमक्खियां शहद बनाती हैं।
बिना कठोर परिश्रम के मंजिल कहां मिल पाती है।।
मेहनत से ही भाग्य बनता है, फूल बंजर भूमि में भी खिलता है।
बिना समुद्र में डुबकी लगाए मोती नहीं कभी मिलता है।।
जैनेन्द्र प्रसाद”रवि’
म.वि.बख्तियारपुर
(पटना)