संचार के बदलते साधन
एक समय ऐसा भी था।
जब संदेश वाहक होते थे कबूतर प्यारे।
पैरों में संदेश बंधा हुआ पहुंचाते थे हमारे।।
समय बदला खुल गए डाकघर।
पत्र ले डाकिया बाबू पहुंचाने लगे घर-घर।।
डाकघर में हम चिट्ठी जब छोड़ते।
कुछ दिनों में चिट्ठी अपनों को मिलते।।
पोस्टकार्ड, लिफाफा, अंतरदेसी और बैरन चिट्ठी।
उनकी याद हमारी यादों में है अब बसती।।
गुजरा जमाना आ गए टेलीफोन।
रिसीवर कान में लगा हम पूछते हैलो कौन?
ट्रिंग-ट्रिंग की घंटी पर पूरे घर में शोर थी मचती।
किसके लिए बजी घंटी पूरे मोहल्ले में बात चलती?
पड़ोसी के घर आना-जाना इसी बहाने हो जाता।
एक घर में टेलीफोन से पूरे मोहल्ले में बात हो जाता।।
तकनीक और सूचना प्रणाली मे जब आई नई क्रांति।
हर हाथ में हो गए मोबाइल बजने लगी रिंगटोन की घंटी।।
अब कहीं से कभी भी चलते-फिरते लोग करने लगे है बातें।
पॉकेट में रख लोग अब घर-दफ्तर में भी लेकर है जाते।।
हो गई बातें आसान ईयर फोन से व्यस्त हो गए कान।
आमने-सामने देखकर अब होती है सारी बातें।
ऑनलाइन का हो गया जमाना मोबाइल पर सारी दुनिया को पाते।।
सच है कि समय होता है बहुत बड़ा बलवान।
आने वाले समय में और नई तकनीक से संचार साधन बनाएगा इंसान।।
धीरज कुमार
UMS सिलौटा
प्रखंड भभुआ (कैमूर)