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सर्दी- जैनेन्द्र प्रसाद रवि

सर्दी

चुपके-चुपके आती सर्दी,
सबको बहुत सताती सर्दी।
अमीरों को यह ख़ूब है भाती,
गरीबों को यह बहुत सताती।
आग की थोड़ी गर्मी पाकर,
छिपकर दुम दबाती सर्दी।
अमीरों को रजाई, कंबल,
गरीबों का अंगीठी का संबल।
दस्ताना, मफलर, स्वेटर में,
घुसकर आंख दिखाती सर्दी।
गर्म मसाला,चाय की चुस्की,
गर्म पेय, कॉफ़ी में मस्ती।
मटन बिरयानी, अंडे की जर्दी,
चीकन से नहीं जाती सर्दी।
एलेक्ट्रीक ओवन, ब्लोअर, गीजर,
काम नहीं आता रूम हीटर।
शीत लहर से पाला जब पड़ता,
अपना धाक जमाती सर्दी।
चिड़िया घोंसले में है सोती, 
ओस टपकती बनकर मोती।
सरीसृप बिल में छिप जाते,
जब अपना पैर फैलाती सर्दी।
पृथ्वी पर छा जाती हरियाली,
मगन होता बागों में माली।
प्रकृति निर्मल हो जाती है,
विरहन को तड़पाती सर्दी।
बच्चे, बूढ़े और जवान ,
घर में दुबकते चादर तान
आग सबका सहारा बनती,
वरना नानी याद दिलाती सर्दी।
अग्नि,धूप अच्छी लगती है,
दोपहर भी बच्ची लगती है।
सूरज जब दिन में छुप जाता,
जड़-चेतन की हाड़ कंपाती सर्दी।

जैनेन्द्र प्रसाद रवि
म. वि. बख्तियारपुर
(पटना)

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