अहंकार
मिलती है इस धरती पर
एक से एक निशानी,
सुना है हमने हर युग में
अहंकार की कहानी।
सतयुग में नृप प्रजापति थे
बहुत बड़े अभिमानी ,
बना लिया शिव को ही शत्रु
जब अहंकार ने ठानी।
त्रेता युग में अहंकार ने
फिर से जाल बिछाया,
चढ़ बैठा रावण के सिर पर
लंका दहन कराया।
द्वापर में चौखट पर बैठा
चुपके से घात लगाया,
दूर्बुद्धि दुर्योधन को देकर
महाभारत करवाया।
अहंकार ने “बीज” को अपने
कलयुग में किया गुड़ायी,
बली के रूप में वृक्ष निकलकर
फिर से धरा पर आई।
अपने अभिमान में चूर
बली ने “प्रभु” को न पहचाना,
गया रसातल पग पड़ते ही
“वामन” को दीन था माना”
स्वरचित
डॉ. अनुपमा श्रीवास्तवा 🙏🙏
मुजफ्फरपुर, बिहार
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