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शौर्य-मनोज कुमार दुबे

Manoj

शौर्य

कितने बलिदानियों के शीश चढ़े, कितनी वीरांगनाओं का इस मिट्टी में रज मिला है।

बोटी बोटी जाकर बिखरी वीरों की,

तो हमें अपनी मां के आंचल में सोने का हक मिला है

शौर्य की गाथा बतलाने को वतन की चिट्ठी चोंच में लिए,

किसी राह पर छटपटाता खग मिला है

जाकर तब हमारे मुल्क को,
शान से आसमान में लहराता तिरंगी ध्वज मिला है।

बच्चा बच्चा हुआ बलिदानी,
तो जाकर बैठे हैं हम इस आजादी की छांव में
जहर घोल रहा जैसे फिर कोई अखंड भारत के गांव में

मत दो पनाह घुसपैठियों को हमारी एकता की नाव में

बांध रहा बेड़ियां फिर दुश्मन,
जैसे छन छन करती मां भारती के पांव में।

भूल गए हो गर भीषण संग्राम तो फिर से याद करो
कही जकड़ न जाए आजादी की फिर शंखनाद करो
कूंचे गए है जो घरौंदे ईंटों से तुम पत्थर उठाकर
फौजी ही क्यों अकेला? सब मिलकर दो दो हाथ करो

नव युवाओं देश फिर से लहू में उबाल मांगता है
राष्ट्र पर हो तन समर्पित देश ऐसा लाल मांगता है।

मनोज कुमार दुबे
उत्क्रमित उच्च माध्यमिक विद्यालय बरवा डुमरी
लकड़ी नबीगंज
सीवान

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