शिक्षक
शिक्षक शिक्षा दान करें, निज शिष्यों का अज्ञान हरें ।
जाति-धर्म से परे रहकर, मानवता का कल्याण करें।
हम दुनियाँ के लोगों में शिक्षा का अलख जगाते हैं,
अशिक्षित, असभ्य लोगों में ज्ञान की ज्योति जलाते हैं।
दीन, सबल हो कोई प्राणी, शिक्षा बिना है अज्ञानी,
अक्षर ज्ञान की बीज से उसको बनाते हम विज्ञानी।
जिसने भी शिक्षा अपनायी, दुनियाँ में होता सम्मानित,
विद्या-हीन नर पशु समान, पग-पग पर होता अपमानित।
शिक्षा ही जग में मानव का सबसे बडा मोती है,
उपेक्षित एवं दलित समाज में आशा की ज्योति है।
धन हीन होकर भी मानव यहाँ पर जीता है,
पर विद्या विहीन नर, हर वैभव से रीता है।
शिक्षक राष्ट्र निर्माता हैं, निज देश के भाग्य विधाता हैं,
तिलक, गोखले, वीर सुभाष, हम गांधी के जन्म दाता हैं।
हम भारत के शिक्षक हैं विश्वास बदलने वाले हैं,
चाणक्य, द्रोण की भांति इतिहास बदलने वाले हैं।
शिक्षक ही कारीगर बन, पत्थर को भगवान बनाते हैं,
विवेक, प्यार की चोट से, पशु को इनसान बनाते हैं।
गुरू होते हैं “गौतम” समान, निःस्वार्थ सबको देते ज्ञान,
जड-चेतन, पशु-पक्षी को प्यार करते एक समान।
जैनेन्द्र प्रसाद “रवि”
पटना, बिहार