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शिष्य-जैनेन्द्र प्रसाद रवि

शिष्य

विद्या, बुद्धि, धीरज, संयम जो जीवन में अपनाता है,
वही गुरू का सर्वश्रेष्ठ शिष्य सदा कहलाता है।
सूर्योदय से पहले जो अपनी शैय्या को छोड़े,
काम-क्रोध, लोभ और ईर्ष्या से मुँह मोड़े।
सब कर्मों से बड़ा कर्म विद्या अर्जित कर पाता है,
वही गुरू का सर्वश्रेष्ठ शिष्य सदा कहलाता है।
सदाचार सह परोपकार हो उसकी नैतिक शिक्षा,
दृढ़ संकल्पित हो जीवन में उच्च ज्ञान पाने की इच्छा।
एकलव्य, आरूणी सा वह आज्ञाकारी बन जाता है।
वही गुरू का सर्वश्रेष्ठ…….।
तन-मन-जीवन अर्पण कर नित्य दिन करता कोशिश,
गुरू चरणों में शांत भाव से सदा झुकाए रहता शीश।
ध्रुव, प्रहलाद, नचिकेता की श्रेणी में पहुँच जाता है,
वही गुरू का सर्वश्रेष्ठ………।
शांतचित्त हो हंस जैसा कोयल जैसी मधुर वाणी,
श्रेष्ठ छात्र से सम्मान पाते हैं जड़-चेतन सभी प्राणी।
सहनशील बन त्याग-तपस्या, न्याय-धर्म अपनाता है,
वही गुरू का सर्वश्रेष्ठ………।
संतोषी, ज्ञान-पिपासु और दृढ़ व्रतधारी,
निज धर्म में तत्पर रहता गुरूजनों का आज्ञाकारी।
गुरू कृपा से अल्प समय में सभी विद्या पा जाता है,
वही गुरू का सर्वश्रेष्ठ शिष्य सदा कहलाता है।

जैनेन्द्र प्रसाद”रवि’
बाढ़

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