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सोचो कैसे बच पाओगे-विजय सिंह नीलकण्ठ

सोचो कैसे बच पाओगे 

हर ओर गंदगी फैली है 
पर्यावरण हो गई मैली है 
क्या करेगा पौधा बेचारा 
गंदगी देख थककर हारा। 
न जल की निकासी दिखे कहीं 
घर के समीप ही सड़े वहीं 
न समझे यह बीमारी है 
बस यही तो लापरवाही है।
अपनी सुविधा के खातिर ही
घर-घर शौचालय बनवाया 
उनसे निकले जो गैस उसे 
हवा में है फैलाया।
फिर शुद्ध हवा कैसे होगी 
इसके बारे में सोचे हो 
कारण है लालच सबकी 
अंग पर्यावरण की नोचे हो। 
घर के बाहर कूड़े कचरों को 
फेंक फेंक न थकते हो 
फिर जिवाणु पनपे उनमें 
तो गंदी हवा ही चखते हो। 
फिर कैसे रहोगे स्वस्थ बता 
औषधि ही खाकर रहो सदा 
जिसकी न जरूरत थी हमको 
लेकिन स्वयं लाए हो विपदा। 
कूड़े कचरों को जला जला 
काले धुएं फैलाओगे 
फिर तुम्हीं बताओ हे मानव 
सोचो कैसे बच पाओगे ?
विजय सिंह नीलकण्ठ
सदस्य टीओबी टीम
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