मैं टिशू पेपर
मैं!
टिशू पेपर!
सभ्यता की पहचान
सौम्य सॉफ्ट आन-बान शान,
हाथों से अधरों, गालों तक,
जाने कहाँ-कहाँ मैं सहज पहुँचता हूँ।
मैं!
टिशू पेपर!
स्वयं को निहारता,
जब अधरों को चूमता,
गुलाबी गालों को सहलाता हूँ,
रंगीनियत का मैं गवाह बनता हूँ,
इठलाता हूँ शर्माता हूँ फुले नहीं समाता।
मैं !
टिशू पेपर!
पैदा होता हूँ,
हरियाली की लाशों पर
हरे पेड़ मुझे सॉफ बनाते,
धरती को हर पल वीरान कर,
अवतरित होता हूँ स्वर्ण सिंहासन पर आसीन।
मैं!
टिशू पेपर!
क्षण-भंगुर मेरी काया,
मसला जाता हूँ नितदिन,
गालों के पसीने, अन्यत्र गंदगी,
सब को साफ करता देता आहुति,
मायावी दुनिया के स्वार्थ-बोध छल का प्रतिबिम्ब।
मैं!
टिशू पेपर!
तरश खाता हूँ,
आदमी की समझ पर,
विकास पर ! अद्भुत अहंकार पर!
संसाधन निर्माण प्रकृति के दोहन पर,
प्रकृति के विद्रूपण, मानवता के विनाश पर।
मैं!
टिशू पेपर!
सोचने को मजबूर!
किसने कहा तुम्हें विकसित?
तुम सभ्य ! भला कैसे? क्यों?
खिलवाड़ प्रकृति संग ! आखिर कब तक?
पलटती प्रकृति, मजबूर तुम हाहाकार सर्वत्र -तुम्हारा इनाम!
डॉ. स्नेहलता द्विवेदी ‘आर्या’