उम्मीदों के नवदीप जलाएँ
उर आच्छादित ईर्ष्या-क्रोध-अहम
चाहकर भी मिटा ना पाए ये हम
घृणा, द्वेष और कलुषित भाव संग
भर गया अंतस तक तिमिर सघन
बुझे-बुझे से हैं जो आश के दीपक
अंतर्मन आलोकित कर उसे जलाएँ
उम्मीदों के नवदीप जलाएँ।
क्यों तमाच्छादित हो गया मन
विहँस विहँस पूछे निर्झर नयन
निस्तेज हो गई क्यों संपूर्ण धरा
क्यों कलुषित हुआ अनंत गगन
मन-मंदिर की संचित निधि संग
आओ आत्म चिंतन कर जाएँ
उम्मीदों के नवदीप जलाएँ।
पाषाण सी हो रही मन की ज़मीं
उम्मीद की मेरी किरणें न थमी
मन अधीर पर सर्वस्व समर्पित
ऊहापोह संग, जाने क्या कमी
तेरी राहों को रौशन करने को
लो दीपक बन खुद जल जाएँ
उम्मीदों के नवदीप जलाएँ।
सद्भाव सुमन हो पुष्पित-पल्लवित
अवनि-अंबर हो हर्षित-पुलकित
सर्वत्र तिरोहित करें भाव कलुषित
ज्ञानदीप से करें सर्वस्व प्रज्ज्वलित
विश्वशांति का कर अंतस समावेश
मानवता के अगणित पुष्प खिलाएँ
उम्मीदों के नवदीप जलाएँ।
इस दीपोत्सव लें हम यही प्रण
सद्भाव फैलाए तज विकार-वमन
घर-आँगन-उपवन करें सुरभित
सदा जग में फैलाएँ सत-आचरण
प्रसुप्त चेतना को जागृत करके
आत्म-परमात्म का बोध कराएँ
उम्मीदों के नवदीप जलाएँ।
अर्चना गुप्ता
अररिया बिहार