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अदृश्य शक्ति -जयकृष्ण पासवान

Jaykrishna

कण-कण में तू व्याप्त है,
निराकार बनके मौन ।
हर लम्हा होता महसूस तेरा,
तेरे बिना उबारे कौन।।
विश्वास फूल की माली बनी,
सुगंध तेरा बसेरा।
भंवरे तो परागन ले उड़े,
होता कलियों का सबेरा ।।
दरिया के तरह तू धार है,
मंजिल बनके तू किनारा।
कश्तियां बनकर आगे बढ़ो,
केवट बनकर सहारा।।
“साहस का तू पुंज है”
मन का तू है दर्पण।
“जिस पर तेरी फज़ल हो”
कर ले तेरा दर्शन।।
अमृत ग़रल के स्वामी हो तुम,
मन में ज्योत जगाय।
रहनुमा बनके आगे चले,
सब ईज़ा दूर हो जाय ।।
धरणी जैसी धुरी पर,
कील बन घुरत समान।
पाप-पुण्य का भार बढ़े,
ज़हीर करत कृपा निधान।।
दुनियां के गुलशन में,
माली की तरह नूर दिये ।
एक अटूट रिश्ते को,
बंधन के छांव में बांध दिये।।
अदृश्य मन की शक्ति से,
बांधे मन की डोर।
तोड़ने पर टुटे नहीं,
अटूट हो जाये पोर ।।
कण-कण में तू व्याप्त है ,
निराकार बनके मौन।
हर लम्हा होता महसूस तेरा,
तेरे बिना उबारे कौन।।
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*जयकृष्ण पासवान- स०शिक्षक उच्च विद्यालय- बभनगामा बाराहाट बांका**

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