मनहरण घनाक्षरी छंद
अखिल ब्रह्मांड बीच,
कोई तो है सार्वभौम,
जिसके इशारे बिना,
पत्ता नहीं हिलता।
धरती खनिज देती,
सीप बीच मिले मोती,
कोमल सुन्दर फूल,
काँटों बीच खिलता।
चैन से वो सुलाता है,
सबको वो खिलाता है,
धरती के तल में भी,
स्वच्छ पानी मिलता।
शरीर के अनुरूप,
बनाया अनेक रूप,
छादिनी को कैसे बिना,
सूई धागा सिलता।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
मध्य विद्यालय बख्तियार, पटना
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