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अवकाश चाहिए -संजय कुमार

sanjay kumar DEO

थकान जो उतार दे,
मन के अवसाद का
मुझे वैसी अवकाश चाहिए।
भागम भाग भरे जीवन में
यन्त्र बने हम काम करे।
खत्म नहीं होता यह फिर भी
नहीं समय है घर समाज के लिये
फुरसत नहीं है परिवार के लिए
पत्नी कसती तंज हमेशा
बच्चे रहते रंज हमेशा
भागम भाग भरे जीवन
फुरसत के चंद सांस चाहिए।
फाइलों को ही नहीं केवल अब
दिलों को भी पढ़ने का वक्त चाहिए
उलझन भरी काम काज से
मोबाइल और लैपटॉप से
कुछ अवकाश चाहिए।
जीवन की जमीं कब ऊसर गया
कोपल निकलने से पहले सुख गया
अपनी एकल मस्ती में
रहने का नाटक करते रहा
और जीवन बीतता रहा
हमें भान नहीं हुआ।
बहुत भर गया,यह मन मेरा
झूठे मान बड़प्पन से
तृप्त हो गया ,अहंकार मेरा
झूठी शान ओ शौकत से
आभास हो रहा हमें भी अब
झूठी तृष्णा से मुक्ति के लिये
उपवास चाहिए
जीवन में मेरी भी कोई फूल खिले
एक प्रयास चाहिए
थकान जो उतार दे,
मन के अवसाद का
मुझे वैसी अवकाश चाहिए।
संजय कुमार
जिला शिक्षा पदाधिकारी
भागलपुर

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