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आँगन के फूल – जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

Jainendra

जग के आंखों के हैं तारे
ये आँगन के फूल हमारे,
इनके आगे फीका लगता है
नील गगन के चांद सितारे।
बच्चे होते हैं तितली जैसे
इनकी शोभा होती न्यारी,
रंग बिरंगे जब फूल खिलेंगे
तब हरी रहेगी फुलवारी।
इनके चेहरे भोले-भाले
ये जीवन के नींव हमारे,
इनसे चहल-पहल दुनिया में
जब चहकते खुशी के मारे।
हीरे-मोती और माल-खजाना
इन पर वारूँ मैं सारा जमाना,
देख-देख मन पुलकित होता
दिल से निकले नया तराना।
राजा-रंक या संत-भिखारी
इनको देख सब मुस्काते हैं,
इनकी एक मुस्कान के आगे
सारे गम हम भूल जाते हैं।
पल में रूठे पल में माने
बैर रखना दिल कभी न जाने,
प्यार करो तो पास आ जाते
मित्र-शत्रु को भी पहचाने।
ज्यादा अंकुश नहीं लगाएं
बचपन की मस्ती भी लेने दें,
बंदिशों का जाल हटाकर
बच्चों को खुलकर जीने दें।

जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर,पटना

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