आओ मिलकर पेड़ लगाएँ
विधा: गीत
छंद – ताटंक(१६-१४)
रचनाकार: देवकांत मिश्र ‘दिव्य’
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आओ मिलकर पेड़ लगाएँ, यह संकल्प हमारा है।
शुद्ध हवा पाने का सबको, केवल यही सहारा है।।
वसुधा का शृंगार सदा से, सुत समान शुचि प्यारे हैं।
पेड़ों से नित बढ़ती शोभा, सौम्य निराले न्यारे हैं।। ये तो हैं जीवन की आशा, यही हमारा नारा है।
आओ मिलकर पेड़ लगाएँ, यह संकल्प हमारा है।
पेड़ हमारे जीवनदाता, इनको सदा बचाना है।
दान सुखद वायु का देते, सबको यही बताना है।।
पंछी की आँखों के तारे, करते नहीं किनारा है।
आओ मिलकर पेड़ लगाएँ, यह संकल्प हमारा है।
छाँव सर्वदा सबको देते, भाव यही बतलाना है।
कभी नहीं निज फल को खाते, यह सबको सिखलाना है।।
दान धर्म का वास हृदय हो, कहकर दिव्य पुकारा है।
आओ मिलकर पेड़ लगाएँ, यह संकल्प हमारा है।
देवकांत मिश्र ‘दिव्य’
मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार

