Site icon पद्यपंकज

आयो कृष्ण कन्हाई – कुमकुम कुमारी ‘काव्याकृति”

Kumkum

भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को,
देवकीनंदन जन्म लिए हैं।
कारागार के बंधन टूटे,
द्वारपाल सब औंधे पड़े हैं।
लेकर टोकरी में कान्हा को,
देखो वासुदेव चल पड़े हैं।
राह में काले-काले बादल,
घनघोर बूंदे बरसा रहे हैं।
नगों के नाग शेषनाग देखो,
सर पे छत्र धराए खड़े हैं।
यमुना जी भी उफन-उफन कर,
कान्हा के चरण धुला रहे हैं।
होले-होले धीरे-धीरे,
वासुदेव कदम बढ़ा रहे हैं।
उधर गोकुल में नंदबाबा,
राह में नैन टिकाए खड़े हैं।
तीनों लोकों के स्वामी,
नंद के आँगन आ रहे हैं।
मैय्या यशोदा के आँचल में,
देखो जगतपिता समा रहे हैं।
कितना प्यारा अद्भुत नजारा,
देख देवता भी हरसा रहे हैं।
बाल लीला देखने महादेव,
नंद के द्वार पे आन खड़े हैं।।

कुमकुम कुमारी ‘काव्याकृति”
शिक्षिका
मध्य विद्यालय बाँक, जमालपुर

1 Likes
Spread the love
WhatsappTelegramFacebookTwitterInstagramLinkedin
Exit mobile version