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उन बेटों की याद कहानी लिखते-लिखते रोया हूँ -अभिषेक कुमार

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      उन बेटों की याद कहानी    लिखते-लिखते रोया हूं 

मैं केशव का पांच जन भी गहन मौन में खोया हूं,
             उन बेटों की याद कहानी    लिखते-लिखते रोया हूं-2
जिनके माथे की कुमकुम-बिंदी वापस लौट नहीं पाई,
     चुटकी,झुमके,पायल ले गई कुर्बानी की अंगड़ाई। 

कुछ बहनों की राखी जल गई है बर्फीली घाटी में,
 वेदी के गठबंधन मिल गए हैं  कारगिल के मिट्टी में।
पर्वत पर कितने सिंदूरी कपड़े दफ़न हुए होंगे,
      बीस बसंतों के जज़्बाती बेटे हवन हुए होंगे।

टूटी चुड़ी धूला महावर रूठा कंगन हाथों का,
            कोई मोल नहीं दे सकता बासंती जज़्बातों का।-2
जो पहले-पहले चुम्बन के बाद काम पर चला गया,
          नई दुल्हन की सेज छोड़कर बाद काम पर चला गया।
उनको भी मीठी नींदों के करवट याद रही होगी,
            खुश़बू में डुबी यादों के सलव याद रही होगी।-2
उन आंखों के दो बूंदों से सातों सागर हारे हैं,
            जब मेहंदी वाले हाथों ने मंगलसूत्र उतारे हैं।-2
गीली मेहंदी रोई होगी चुपके घर के कोने में,
             ताजा काजल छूटा होगा चुपके-चुपके रोने में।-2

जब बेटे की अर्थी आई होगी सूने आंगन में,
      शायद दूध उतर आया हो  बूढ़ी मां के दामन में।-2
वो विधवा पूरी दुनिया का बोझा सर ले सकती है,
           जो अपने पथ की अर्थी को भी कांधा दे सकती है।-2
मैं ऐसी हर देवी के चरणों में शीश झुकाता हूं,
      इसीलिए मैं कविता को  हथियार बनाकर गाता हूं 
जिन बेटे ने पर्वत काटे हैं अपने नाखूनों से, 
     उनकी कोई मांग नहीं है दिल्ली के क़ानूनों से।
जो सैनिक सीमा रेखा पर ध्रुव तारा बन जाता है,
      उनकी कुर्बानी के दीपक से सूरज भी शरमाता है।

गरम दहानों पर तोपों के जो सीने अड़ जाते हैं,
            उनकी गाथा लिखने को अंबर छोटे पड़ जाते हैं।
उनके लिए हिमालय कांधा देने को झुक जाता है,   
कुछ पल के लिए सागर के
लहरों का गर्जन रुक जाता है
उस सैनिक के शव का दर्शन तीरथ जैसा होता है,
            चित्र शहीदों के मंदिर में मूरत जैसा होता है।

क्या ये देश उन्ही का है जो सीमा पर मर जाते हैं?
           अपना लहू बहा कर टीका सरहद पर कर जाते हैं।
कोई युद्ध वतन के ख़ातिर सबको लड़ना पड़ता है,
            संकट के घड़ियों में सबको सैनिक बनना पड़ता है
जो क़ौम देश के ख़ातिर मरने को तैयार नहीं, 
            उनकी संगती को आज़ादी जीने का अधिकार नहीं।-2
सैनिक अपने प्राण गंवाकर देश बड़ा कर जाते हैं,
        बलिदानों के बुनियादों पर देश खड़ा कर जाते हैं।
जिसको मां के बलिदानी बेटों से प्यार नहीं होगा,
          उन्हे तिरंगा लहराने का कोई अधिकार नहीं होगा।

जय हिंद जय भारत..!!

 

अभिषेक कुमार (छात्र),
पाटलिपुत्र यूनिवर्सिटी,
बिहार शरीफ (नालंदा)

 

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अभिषेक कुमार

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