ऐ इंसान तुम इंसानियत क्यों भूलते हो
कभी भी मेरी खोज नही करते तुम
न हीं कभी कोई खैरियत पूछते हो।
जब टूटा था दुःख का पहाड़ तुम पर
तब दौड़कर आया था तुम मेरे घर पर,
मैं दुःख के घड़ी में साथ दिया तुमको
अब मुझे हीं देकर तुम मुँह फेरते हो।
ऐ इंसान————–२।
मुँह न फेरो कभी किसी को देखकर
मुसीबत आती है कभी भी किसी पर,
उस समय याद आते हैं बस अपने हीं
दुःख में साथ देने आते हैं अपने हीं दौड़कर।
ऐ इंसान————२।
ऐ इंसान कभी भी तुम
अपने इंसानियत को न भूलना,
जो दुःख के घड़ी तुम्हरा साथ दे
तुम भी दुःख में उसकी मदद करना।
ईश्वर ने तुमको इंसान बनाकर
इस जमीं पर तुझे भेजा है,
तुम बेसहारा को सहारा देना
और सदा सत्य की राह पर चलना।
ऐ इंसान———-२।
स्वरचित कविता
नीतू रानी, पूर्णियाँ बिहार।
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