जिस मूरत को ज्ञान दिया ,
वो जग में है नाम किया।
उसी पेड़ की डाली बनकर,
वृक्षों का अपमान किया।।
क्षमा दान कर फिर भी सहते,
अपने ड्यूटी पर डटे रहते।
आंधी तूफान हो चाहे वर्षा,
मौत को हराकर सारे काम करते।
फिर भी कुछ तो शर्म करो,
हम भी उस बाग के फूल है।
मानव हो कुछ रहम करो।।
आग के शोले है मेरे काफ़िले,
हवा के झोंके में सूलगते नहीं।
उठती है जब मेरी चिंगारी,
वहां फिर कुछ बचते नहीं।।
दूर-दूर तक विरान हो जाते,
फिरकोई सियासत टिकती नहीं।
अपनी भूल को सुधार करो,
नित-दिन तू उपकार करो।
दरिया की कश्तियां बनकर,
बलखाती मंजधारें पार करो।।
जयकृष्णा पासवान स०शिक्षक उच्च विद्यालय बभनगामा बाराहाट बांका
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