बच्चों की आस हूं,
रहता उनके पास हूं,
सीखने सिखाने में उस्ताद हूं,
हर पल देता उनको दाद हूं,
देश के भविष्य है हमारे बच्चे,
प्रतिभा निखारने में हम है सच्चे,
शिक्षण कौशल का करता उपयोग,
लगता क्यूं न करूं TLM का प्रयोग,
सीखने-सिखाने की राह होंगी आसान,
खेल-खेल में सीखेंगे बच्चे, जो है उनकी पहचान,
अनयास, मन में कौंधा एक विचार,
क्यूं न बनाऊं एक ऐसा जुगाड़,
जो पढ़ाने की प्रक्रिया को दे एक बेहतर आकार,
आए सोंच को प्रतिरूप देने में जुट गया,
शिक्षक हूं यह शून्य हो गया,
देख कबाड़ में लकड़ी,
हाथों में मैंने उसे पकड़ी,
शिक्षण समस्याओं पर दौड़ाई नजर,
लगा रचने, दिखा प्रयास का असर,
कार्डबोर्ड, पिन, गोंद ने दिया साथ,
बन गई बात,
मूर्त रूप देख, हुआ हैरान,
समस्या का हो चुका था निदान,
बन चुका था गणितीय संक्रियाओं का जाल,
सफलता पर मैं हुआ निढ़ाल,
कम लागत से ठोस TLM हुआ तैयार,
इसे कहते है,कबाड़ से जुगाड़।
विवेक कुमार
(स्व रचित एवं मौलिक)
उत्क्रमित मध्य विद्यालय, गवसरा मुशहर
मड़वन, मुजफ्फरपुर (बिहार)
कबाड़ से जुगाड़- विवेक कुमार
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