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काली घटा – जय कृष्ण पासवान

Jaykrishna

काली घटा छाई है नभ में,
मौसम का रंग सुहाना है।
धरती फूलों की हार है पहनी,
वो हवा का रुख पुराना है ।।
झम-झम करती वर्षा रानी,
झुंझुर के स्वर मस्ताना है।
बिजलियां चमक कर राह
दिखाती,
इन्द्रधनुष बना दिवाना है।।
दरिया तूफानी कुछ कह रही है,
साहिल के आंखों में पानी है।
कश्तियां सफ़र में मायूस पड़े,
ये दो पल की जिंदगानी है।।
छन-छन पायल गा रही है,
भंवरे गीतों का मस्ताना है।
मन के विरासत में बस तू ही तू “दरिया बन-बह जाना है”।।
कीट-पतंग सब झुम रहे है, शमा के स्नेह में मिट जाने को
“मेंढक शहनाई के तान छेड़- रहे”
प्रेम सुधा बरसाने को ।।
तितलियां मचलती है आकाश में” मोर तांडव की रवानी है ”
दिल के धड़कन की हर सांसों में खुशबू बन महक जाना है।
काली घटा छाई है नभ में,
मौसम का रंग सुहाना है।
धरती फूलों की हार है पहनी,
वो हवा का रुख पुराना है।।
**जय कृष्ण पासवान*
सहायक शिक्षक उच्च विद्यालय बभनगामा बाराहाट बांका

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