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काल-खण्ड – एस.के.पूनम

S K punam

संसार में समय एक सा रहता नहीं है सदा,
आज जहाँ उत्सव- काल है
कल वहाँ शोकाकुल होगा,
आज जहाँ सद्भावनाओं का कीर्ति स्तम्भ है,
कल वहाँ अपयशों का बाजार पसरा होगा।

कल निशाकाल में बुना था स्वर्ण जाल,
प्रातः बिखर गया सपनों का स्वर्ण जाल,
आज जहाँ उन्नति का पताका फहरा होगा,
कल वहीं अवनति का निशान पसरा होगा।

आज कलकल बहनेवाली निर्झरिणी,
पवित्र जल राशि की स्वामनी कहलाती है,
कल कचड़ों के अम्बारों से भर जाएगी,
फिर धरा पर प्रदूषित कहलाने वाली है।

आज जो कर्म पथ से विचलित हैं,
कल उन्हें अवसानो का भय सताएगा,
फिर वह अपने कर्तव्य पथ पर आएगा
और वह संसार में श्रेष्ठ कहलाएगा।

कल तक शिक्षालय अरण्यों में शोभित था,
आज वह हर मुहल्ले, कस्बों में गुलज़ार है,
कल तक शिक्षा का आँचल सिमटा हुआ था,
आज उसकी आँचल चहूं ओर फैला है।

संसार में समय एक -सा नहीं रहता है सदा,
यही है काल-खण्ड, यही है काल -खण्ड।

एस.के.पूनम(स.शिक्षक)
फुलवारी शरीफ,पटना।

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