दिल में है सच्चा प्यार मगर ,
करते क्यों ना इकरार प्रिय।
बस सुनने को व्याकुल है मन,
क्यों करते हो इनकार प्रिय।
तेरी चाहत और अनंत प्रेम का
किस विधि लूं मैं थाह प्रिय।
हर रोज बड़ाई सखियों की,
और कहते हो एतबार करूं।
गिनाकर मेरी कमियों को क्यों
चाहते हो मैं प्यार करूं।
अब और सितम ना ढाया करो,
मैं करती हूं आगाह प्रिय।
किस विधि लूं तेरी थाह प्रिय।।
मैं जब पीड़ा में होती हूं,
तुम छुपकर नैन बहाते हो।
मेरी खुशियों के लिए सदा,
तुम दुनियां से लड़ जाते हो।
तेरे प्रेम का है अन्दाज अलग,
यूं हीं करना तू निबाह प्रिय।
किस विधि लूं तेरी थाह प्रिय।।
है एक अनूठी बात मगर,
मैं दिल से साझा करती हूं।
कितनी भी शिकायत हो हमसे ,
तेरे दिल में मैं हीं रहती हूं।
तेरे संग खुशियों के सागर में
करती हूं अवगाह प्रिय!
किस विधि लूं तेरी थाह प्रिय।।
स्वरचित-
मनु रमण चेतना
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