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कुंडलिया – देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

Devkant

बेटी से नित बढ़ रहा, आज देश का मान।
बेटों से आगे सदा, रहते इनके काम।।
रहते इनके काम, देश की शान बढ़ाती।
यही सृष्टि का धाम, यही संसार रचाती।
पाती है सम्मान, खुशी की लाती पेटी।
मानवता की जान, यही शीतल-सी बेटी।।०१

बेटा है कुलदीप तो, बेटी घर की शान।
दोनों एक समान हैं, करना इनका मान।।
करना इनका मान, यही हैं सदन दुलारे।
रखना हरपल ध्यान, यही आँखों के तारे।
कहता दिव्य समाज, बाँध निज कटि में फेंटा।
भेद नहीं हो आज, मिटा दो बेटी- बेटा।।०२

बेटा-बेटी को मिले, अवसर एक समान।
दोनों ही संतान हैं, मात-पिता की शान।।
मात-पिता की शान, इसे तुम सच्चा मानो।
सपनों का अरमान, इसे तुम दिल से जानो।।
कहता हूँ मैं आज, सदा तुम क्यों हो लेटा।
मिलकर करना काज, अंतर न बेटी- बेटा।।०३

देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार

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